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________________ जैन-भक्तिकाध्यकी पृष्ठभूमि पूज्यपादका शान्त्यष्टक, उन्हींको सम्बोधित करके लिखा गया है। अनेक शान्तिचक्र-पूजाओं और शान्तिपाठोंका भी उन्हींसे सम्बन्ध है। इस भांति सिद्ध है कि शान्ति-भक्तिमें भगवान् शान्तिनाथकी भक्ति हो निरूपित है। शान्ति-भक्ति ... आचार्य पूज्यपादने शान्ति-भक्तिमें लिखा है कि जिनेन्द्रके चरणोंकी स्तुति करनेसे समस्त विघ्न और शारीरिक रोग उपशम हो जाते हैं । जैसे कि मन्त्रोंके पाठसे सर्पका दुर्जय विष शान्त हो जाता है। ... भगवान्के चरणोंके गीत गानेसे समस्त आमय इस प्रकार दूर हो जाते हैं, जैसे सिंहकी गर्जनासे हाथी भाग जाते हैं । श्री वादिराज सूरिका कोढ़ एकीभावस्तोत्रके उच्चारणसे शान्त हो गया था। १. देखिए, दश-मक्कि : शोलापुर, सन् १९२१ ई०, पृष्ट ३४२-३४७ । २. देखिए, पं० आशाधरकी शान्तिचक्रपूजा : ( प्रतिष्ठासारोद्धारमें संकलित ) धर्मदेवकी शान्तिपाठपूजा और भट्टारक सुरेन्द्रकीर्तिकी शान्तिचक्रपूजा ( भामेर शास्त्रभण्डार जयपुरकी ग्रन्थसूची, १० १५१ ), शान्तिकसमस्तविधि और शान्तिधारापाठ ( राजस्थानके जैनशास्त्र भण्डारोंकी ग्रन्थसूची : भाग २, पृ० ६७ ), पं० सूरिचन्द्रको शान्तिलहरी ( आमेर शास्त्र भण्डार जयपुरकी ग्रन्थ सूची, पृ० १५२ )। क्रुद्वाशीविषदष्टदुर्जयविषज्वालापीविक्रमो, विद्याभेषजमन्त्रतोयहवनर्याति प्रशान्ति यथा । तद्वत्ते चरणाम्बुजयुगस्तोत्रोन्मुखानां नृणाम् , विघ्नाः कायविनायकाश्च सहसा शाम्यन्त्यहो विस्मयः ॥ आचार्य पूज्यपाद, संस्कृत शान्तिमति : दशभक्ति : शोलापुर, १९२१ ई०, श्लोक २, पृ० ३३५ । ४. स्वस्पादद्वयपूतगीतरवत: शीघ्रं द्रवन्त्यामयाः । दध्मिातमृगेन्द्रभीमनिनदाद्वन्या यथा कुम्जराः ॥ देखिए वही : श्लो० ५, पृ० ३३९ । ५. प्रागेवेह त्रिदिवभवनादेष्यता भव्यपुण्या स्पृथ्वीचक्रं कनकमयतां देव निन्ये स्वयेदम् । ध्यानद्वारं मम रुचिकर स्वान्तगेहं प्रविष्टस्तरिक चित्रं जिन ! वपुरिदं यत्सुवर्णीकरोषि ॥ वादिराजसूरि, एकीमावस्तोत्र : काव्यमाला, सप्तम गुच्छक, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, श्लो० ४, पृ० १८ ।।
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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