SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-भक्तिके भेद लिखा है, "जो प्रतिदिन पंचपरमेष्ठियोंका स्मरण करता है, उसकी धार्मिक इच्छाओंको, शासनदेवता प्रसन्न होकर पूरा करते हैं।'' ७. तीर्थंकर-भक्ति 'तीर्थकर' शब्दका अर्थ __ 'तीर्थ करोतीति तीर्थकरः' से स्पष्ट है कि तीर्थको करनेवाला तीर्थकर कहलाता है। यह संसाररूपी समुद्र जिस निमित्तसे तिरा जाता है, वह ही तीर्थ है। धनञ्जयने द्वादशांगको तीर्थ कहा है, क्योंकि उसके सहारे भव-समुद्रको पार किया जा सकता है। आचार्य श्रुतसागरने रत्न-त्रयको 'तीर्थ' माना है, क्योंकि उसके अभावमें, संसारसे छुटकारा नहीं हो सकता। श्री योगीन्दुने आत्माको ही तीर्थ कहा है, उसमें स्नान किये बिना, कोई भी जीव संसारके दुःखोंसे मुक्त नहीं हो सकता। श्रीमच्छान्तिसूरिने लिखा है कि चतुर्विध संघ ही तीर्थ है, क्योंकि उसका आश्रय लिये बिना भवार्णवसे तिरा नहीं जा सकता। तात्पर्य यह १. निच्चु वि सुगुरु-देवपयभत्तह, पणपरमिटि सरंतहु संतहं । सासणसुर पसन्म ते भब्वइं, धम्मियकज्ज पसाहहि सब्बई ॥ जिनदत्तसूरि, उपदेशरसायनरास : अपभ्रंशकाव्यत्रयी, लालचन्द गान्धी सम्पादित, गायकवाड़ ओरिएण्टल सीरीज़, बड़ौदा, १९२७ ई०, श्लोक२५वाँ। २. पं० आशाधर, जिनसहस्रनाम : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, १९५४, ४१४७ की स्वोपज्ञवृत्ति , पृष्ठ ७८ । ३. 'तीर्यते संसारसागरो येन तत्तीर्थम्' देखिए वही : ९।४७ की स्वोपज्ञवृत्ति, पृ० ७८ । ४. 'तीर्थ द्वादशाङ्गशास्त्रं करोतीति तीर्थकरः' धनम्जयनाममाला : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, ११६वें श्लोकका माध्य, पृष्ठ ५८-५९ । ५. 'धर्मश्चारित्रं स एव तीर्थः, तं करोतीति धर्मतीर्थकरः' पं० आशाधर, जिनसहस्रनाम : ४।४८ को श्रुतसागरी टीका, पृ० ५६५ । ६. अण्णु जि तित्थु म जाहि जिय अण्णु जि गुरुउ म सेवि । अण्णु जि देउ म चिंति तुहुँ अप्पा विमलु मुएवि ॥ योगीन्दु, परमात्मप्रकाश : ब्रह्मदेवकी टीकासहित, १९५, पृष्ट ९८ । तित्थं जिणेहि मणियं, संसारुत्तारकारणं संघो। चाउवो नियमा, कुणंति तं तेण तिस्थयरा ।।
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy