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________________ skale ntomonymsama HIN ................ S जैन-भक्तिकान्यकी प्रालि रागता, और तेजस्वितासे युक्त हैं, तथा जो गगनकी भाँति निलिप्त और सागरको भाँति गम्भीर हैं। ____ आचार्य पूज्यपादने संस्कृत आचार्यभक्तिमें, आचार्यके विविध गुणोंका विशद वर्णन किया है। ऐसे गुणोंसे संयुक्त आचार्योंकी भक्तिमें उनको पूर्ण आस्था है। योगमें स्थिर, तपकी नानाविधियोंके सम्पादन में अग्रणी, पाप-कर्मके उदयसे होनेकाले जन्म-जरा-मरणके बन्धनोंसे मुक्त आचार्योंको, 'मुकुलीकृतहस्तकमलशोभितशिरसा' नमस्कार करनेसे, अविनश्वर, निर्दोष और अनन्त मोक्ष-सुख प्राप्त होता है। ... .. ... श्री यतिवृषभने भी आचार्यके गुणोंका वर्णन कर, उनको प्रसन्नता प्राप्त करनेको अभिलाषा की है। श्री शिवार्यकोटिने भगवती आराधनामें, विशुद्ध १. उत्तमखमाए पुढवी पसण्णभावेण अच्छजलसरिसा । कम्मिधणदहणादो अगणी वाऊ असंगादो । दशभक्ति : शोलापुर, सन् १९२१, प्राचार्य कुन्दकुन्द, प्राकृत आचार्य भक्ति : ५वों गाथा, पृष्ठ २१० । २. गयणमिव णिरुवलेवा अक्खोहा सायरुवमुणिवसहा । एरिस गुणणिलयाणं पायं पणमामि सुद्धमणो ।। देखिए वही : आचार्य कुन्दकुन्द, प्राकृत आचार्यभक्ति : ६ठी गाथा, पृष्ठ २१०। ईदृशगुणसम्पन्नान्युष्मान् भक्त्या विशालया स्थिरयोगान् । विधिनानारतमग्रयान्मुकुलीकृतहस्तकमलशोभितशिरसा ॥ अभिनौमि सकलकलुषप्रभवोदयजन्मजरामरणबन्धनमुक्तान् । शिवमचलमनधमक्षयमव्याहतमुक्तिसौख्यमस्त्विति सततम् । दशभक्त्यादिसंग्रह : श्री सिद्धसेन सम्पादित, सलाल, साबरकांठा, गुजरात, प्राचार्य पूज्यपाद, संस्कृत आचार्यभक्ति : १०,११ श्लोक, पृष्ठ १६३ । ४. पंचमहन्वयतुंगा तक्कालिय स पर समय सुदधारा। णाणा गुणमरिया आइरिया मम पसीदंतु ॥ श्री यतिवृषभ, तिलोयपण्णत्ति : भाग १, डॉ. आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये और डॉ० हीरालाल जैन सम्पादित, पं० बालचन्द हिन्दी-अनूदित, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, १९४३ ई०, पहला अध्याय, तीसरी गाया।
SR No.010090
Book TitleJain Bhaktikatya ki Prushtabhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1963
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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