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________________ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [प्रथम SA -A . ......... .. - स्थापित हुई, और जनताको थोड़ी तसल्ली मिली । उस समय समाज, व्यापार और धर्मों की व्यवस्था भी कुछ ठीक हुई। अकबर बादशाहको धार्मिक वार्तालापकी बड़ी रुचि थी। वह एक ऐसा धर्म चलाना चाहता था, जिसमें कि हिन्दू, मुसलमान, जैनी, कृश्चियन आदि सब मिल जायँ । उसी के अनुसार उसने 'दीने-इलाही' नामके धर्मकी स्थापना की थी। पर वह उसीके जीवन तक कायम रहा, और बादमें नष्ट हो गया। जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि अकबर बादशाहको धार्मिक मामलोंसे बड़ी दिलचस्पी थी, उसीके अनुसार उसकी इच्छा हीरविजय सूरिसे मिलनेकी हुई। उसके अनुसार हीरविजय सूरि गुजरातसे विहार कर फ़तेहपुर सीकरीमें बादशाहसे मिले । उनका बादशाहपर बड़ा असर पड़ा । उन्होंने जीवदयाका काफी प्रचार कराया। तीर्थ स्थानोंपर जो कर लगाया, उसे माफ कराया। जो टैक्स हिन्दुओंसे जजियाके नामसे वसूल किया जाता था, उसे माफ कराया। इसके अलावा बादशाहको वर्षमें कई महीने माँस खानेके त्याग कराये। इसके अलावा उन्होंने जीवदया सम्बन्धी कई पट्टे निकलवाये। इस समयमें जैनधर्म अवश्य चमका और काफ़ी जनताने इस धर्मको अङ्गीकार किया। वीर निर्वाणकी दूसरी शताब्दीके अन्तमें जैनसमाजमें द्वेष और कलहकी भावनाएँ बढ़ने लगी और लोग ऐसे समयकी राह देखने लगे कि जब वे जाहिर रूपसे अलग हो जाय। वीर
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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