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________________ १४ * जेल में मेरा जैनाभ्यास [ प्रथम जैनधर्मके सिद्धान्तों तो जैनधर्म एक सनातनधर्म है, पर हम यहाँ बाल्मीकि रामायण और व्यास-महाभारत से सिद्ध करेंगे कि उनमें भी जैनधर्मका वर्णन है । बाल्मीकिरामायण एक स्थानपर इस भांति लिखा है:"वारा भजते नित्यं नाथवन्तश्च भजते । तापसा मञ्जते चापि श्रमणाश्चैव सजते ॥" " -बा० १२० १४, १२ । * हुआ अर्थात् राजा दशरथके यज्ञ में ब्राह्मण, शूद्र तापस और श्रम यादि नित्य भोजन करने लगे । यहाँपर कमें जो श्रमण शब्द आया है, वह अधिकांश जैन साधुओंके लिये ही उपयुक्त हुआ है। जैनधर्ममं साधुश्रीकेलिये श्रम-शब्दका अधिक प्रयोग है और टीकाकारने तो यहाँ श्रमण-शब्दका अर्थ बौद्ध-संन्यासी - बौद्ध साधु किया है। तथाहि - 'बौद्ध-श्रमणः बौद्ध-संन्यासिनः' | टीकाकार के कथनानुसार उस समय बौद्धधर्मक साधु मौजूद थे। इससे सिद्ध हुआ कि उस समय बौद्धधर्म था । बौद्धधमका आविर्भाव जैनधर्मके बाद हुआ है। यह बात आज निर्विवाद सिद्ध हो चुकी है । इसलिये बाल्मीकि रामायण के समय में भी जैनधर्मका अस्तित्व था । व्यास-महाभारत में जैनमतका जिस तरह जिक्र है, वह अन्य पुराणोंसे विलक्षण और बड़े महत्त्वका है। उसमें अन्य मतोंके साथ साथ जैनमतके मूल सिद्धान्त ( सप्तभङ्गीनय ) का वर्णन बड़ी सुन्दरतासे किया है। वह इस प्रकार है
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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