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________________ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय . म्थानपर साढ़े तीन रज्जु आवे वहाँ एक रज्जु तर संपूर्ण लोक नीचेसे ऊपर तक सीधा गौर तीन सौ तेतालीस रज्जु घनाकार है। में विभक्त हैं:। नीचेका लोक, २-मध्य अथवा तिर्खा अथवा ऊँचा लोक। कमें निगोद और सात नरक हैं । पहिले नरकके ऊपर और नीचके एक-एक आंतरेको छोड़ कर कारके भवनवासी देव हैं । इस प्रकार निगोदसे अधोलोक है। इसके बाद मध्यलोक शुरू विस्तार पहिले नरकसे ज्योतिमण्डल नरकके ऊपर, और हम लोग जहाँ रहते हैं क 14, आठ प्रकारके व्यन्तर और आठ प्रकारके यन्तर देव रहते हैं । बादमें पृथ्वीके ऊपर जम्बूद्वीप, लवण, धातकीखण्ड द्वीप कालोदधि समुद्र, पुष्कराध द्वीप, मानुपर्वत श्रादि असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं। इनसे पाठ • ऊँचाईपर चन्द्र, सूर्य, गृह, नक्षत्र और तारा-मण्डल हैं। डेढ़ रज्जु ऊँचाई परसे ऊर्ध्वलोक शुरू हो जाता है। लोकमें बारह देवलोक, नौ प्रैवेयक, पाँच अनुरसिद्ध शिला है।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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