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________________ ४०८ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय शिष्यजन अध्ययन करते हैं उनको उपाध्याय जी कहते हैं। पर जो समीपमें रहें हुए अथवा आये हुए साधु आदि जनों द्वान्तका अध्ययन कराते हैं, उनको उपाध्यायजी कहते हैं। 4-जिनके समीपत्वसे सूत्रके द्वारा जिन प्रवचनका अधिक परण होता है, उनको उपाध्यायजी कहते हैं। अथवा क ध्यान करते हैं, उनको उपाध्यायजी कहते हैं। उपयोगपूर्वक ध्यानमें प्रवृत्त होकर पाप कर्मका त्याग बाहर निकल जाते हैं, उनको उपाध्यायजी कहते हैं । अथवा--मानसिक पीड़ाकी प्राप्ति, कुबुद्धि की प्राप्ति तथा दुर्ध्यान की प्राप्ति जिनके द्वारा अपहत होती है, उनको उपाध्यायजी कहते हैं। श्र -जो ज्ञानके भण्डार, दयाके सागर, ज्ञान रूपी नेत्रके स्नेक गुण युक्त होते हैं, उन्हें उपाध्यायजी कहते हैं। . . . लक्षणोंसे युक्त उपाध्यायजीको नमस्कार करने का क्या हेतु है .. उत्तर-उक्त उपाध्यायजी पचीस गुण युक्त होते हैं, द्वादशाङ्गी आदि सूत्रोंके धारक और सूत्र और अर्थक विस्तार करनेमें रसिक होते हैं, आये हुए या रहे हुए शिष्यों व साधुओंको जिन वचनोंका अभ्यास कराते हैं । इस हेतु भव्य जीवोंके ऊपर उपकारी होने के कारण उनको नमस्कार करना चाहिये। प्रश्न-उपाध्यायोंका ध्यान किसके समान तथा किस रूपमें करना चाहिये?
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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