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________________ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * (থম - mom तथा देव-मार्गसे भ्रष्ट अन्य लोग बौद्ध मतानुयायी बने। तत्पश्चात् वह (बुद्ध) आहत (जैन) बना और उसने जैन बनाये । इस प्रकार वेद-धमसे भ्रष्ट पाखण्डी लोगों की उत्पत्ति हुई। पाठकोंन जैन-धर्मक विषयमें श्रीमद्भागवतके बाद अग्निपुराणाके कथनको भी पढ़ लिया। कथन एकसे एक बढ़ कर है ! भागवतमें तो लिखा है कि ऋषभदेवके चरित्रको सुन और उनकी शिक्षाको ग्रहण कर अहन नामक किसी राजाने जैन-मतका प्रचार किया और यहाँ अग्नि-पुराणका कथन है कि बुद्ध भगवान्ने ही पश्चात जैन बन कर उक्त मतको चलाया। अब हम दोनों से सत्य किसे कह, मिथ्या किसे ठहराये ? इस बात की पाठक खुद बालोचना करें। हमारे ख्याल में तो इस प्रकारके लेखों में परस्पर विरोधका होना ही इस बातका प्रमाण है कि उक्त बाताकी उत्पत्ति-भूमिका द्वपानल ही है, वस्तुस्थिति नहीं। परन्तु धन्य है उन लोगोंको जो इस प्रकारके आधारोंपर ही जैनधर्मका इतिहास लिखने बँट जाते हैं ! इसी प्रकारके कथन गरुड़-पुराण, विष्णु पुराण, शिवपुराण, मत्स्य-पुराण, कूर्म-पुराण आदिमें भी पाये जाते हैं। इस सम्बन्धमें अधिक वादविवाद करना हम व्यर्थ समझते हैं। जैन-धर्मसे सम्बन्ध रखनेवाले जितने भी लेख उपरोक्त पुराणमें पाये जाते हैं, उन सबपर सम्यक्तया विचार करनेसे निम्नलिखित बातें प्रकट होती हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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