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________________ ४०४ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय AAAAAAAAAAAAAAAA... क्षय करके लघुभूत हुए, चार प्रकारका आयु कर्म क्षय करके अमर हुए, चार प्रकारका नाम कर्म क्षय करके अमूर्त हुए, दो प्रकारका गोत्र कर्म क्षय करके शरीर दोष रहित हुए, पाँच प्रकार के अन्तराय कर्म क्षय करके अनन्त शक्तिके धारक हुए। सिद्ध भगवानके कोई वर्ण नहीं, कोई रस नहीं, कोई स्पर्श नहीं, कोई वेद नहीं, कोई गंध नहीं, काय नहीं, कर्म नहीं, जन्म नहीं, मरण नहीं, रोग नहीं, शोक नहीं, वियोग नहीं, मोह नहीं, निरंजन निराकार आदि अनेक गुण युक्त ये सिद्ध भगवान् सिद्धशिलापर सदाकाल विराजमान रहते हैं और उपरोक्त अनेक लोकोत्तर गुणोंको प्रास्वादन करते हैं। प्रभ-उक्त लक्षणोंसे युक्त सिद्धोंको नमस्कार करनेका क्या कारण है ? ___ उत्तर--अविनाशी तथा अनन्त ज्ञान, दर्शन चारित्र और वीर्य रूप चार गुणों के उत्पत्ति-स्थान होनेसे, उक्त गुणोंसे युक्त होनेके कारण, अपने विषयमें अतिशय प्रमोदको उत्पन्न कर अन्य भव्य जीवोंकेलिये आनन्द उत्पादनके कारण होनेसे वे अत्यन्त उपकारी हैं । अतः उनको नमस्कार करना उचित है। प्रश्न--सिद्धोंका ध्यान किसके समान तथा किस रूपमें करना चाहिये ? उत्तर-सिद्धोंका ध्यान उदित होते हुए सूर्यके समान रक्त वर्णमें करना चाहिये । सिद्ध भगवान संख्यामें अनन्त हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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