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________________ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय उत्तर - अरिहंत भगवान् ‌का ध्यान चन्द्रमण्डल के समान श्वेतवर्ण में करना चाहिये । पृथ्वीपर एक समय में संसार में जघन्य बीस और उत्कृष्ट एक सौ साठ तथा एक सौ सत्तर तक अरिहंत हो सकते हैं। ४०२ ' णमो सिद्धाणं' प्रश्न - 'णमो सिद्धाणं' इस दूसरे पदसे जिन सिद्धोंको नमस्कार किया गया है, उन सिद्धों का क्या स्वरूप है अर्थात् सिद्ध किनको कहते हैं ? उत्तर -- जिन्होंने चिरकाल से बँधे हुए आठ प्रकार के कर्मरूपी इन्धन समूहको जाज्वल्यमान शुक्लध्यानरूपी अग्नि से जला दिया है, उनको सिद्ध कहते हैं । अथवा - जो मोक्ष नगरी में चले गये हैं, उनको सिद्ध कहते हैं। अथवा - जिनका कोई भी कार्य अपरिपूर्ण नहीं रहा है, उनको सिद्ध कहते हैं । अथवा - शासन के प्रवर्त्तक होकर सिद्ध रूपसे जो मङ्गलत्वका अनुभव करते हैं, उनको सिद्ध कहते हैं । अथवा -जो नित्य पर्यवसित अनन्तस्थितिको प्राप्त होते हैं, उनको सिद्ध कहते हैं। अथवा - जिनसे भव्य जीवोंको गुण-समूहकी प्राप्ति होती है, उनको सिद्ध कहते हैं। pin संसारी आत्मा के जो कर्म लगे हुए हैं, जिनकी कि वजहसे । संसारी आत्मा संसार - परिभ्रमण किया करता है और अपने सुख-स्वरूपका अनुभव नहीं कर सकता, उनको आठ विभागों में बाँटा गया है। क्योंकि आत्मा के आठ महागुणों का, जिनके अन्दर
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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