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________________ * जलमें मेरा जैनाभ्यास * [प्रथम -- - निजमनीषयामन्दः सम्प्रवत्तीयष्य ॥६॥ यन सह वाब कलों मनुजापसदा देवमायामोहिताः स्वविधिनियोगशौचचरित्रविहीनदव हलनान्यपवतानि निजेच्छया गृहणाना अस्नानाचमनशौचके शोल्लम्चनादानि कलिनाधर्मबहुलेनापहतधियो ब्रह्मब्राह्मण यज्ञपुरुषलोकविदूषकाः प्रायेण भविष्यन्ति ॥१०॥ ते च स्वबह्यावलि नया निजलोकयात्रया उन्धपरम्परया श्वस्तास्त मस्यन्धे स्वयमेव प्रपतिष्यन्ति ॥११॥ अयमवतारो रजसोपप्ल. कैवल्योपशिक्षणार्थः ।" ___ भावार्थ-जिस ऋषभदेवके चरित्रको सुनकर काकवत और कुटकादि देशों का अहेन नामका राजा श्री ऋषभदेवकी शिक्षाको लेकर पूर्व कर्मोंक अनुसार जब कलियुगमें अधम्म अधिक हो जायगा तब अपने श्रेष्ट धर्मको छोड़ कर कुपथपाखण्ड मत को निज मतस चलावेगा, जो कि सबके विरुद्ध होगा | जिसके द्वारा कलियुगमें प्राय: ऐसे नीच मनुष्य हो जावेंगे जो कि देवमायासे मोहित होकर अपनी विधि शौचहीन और चारित्र्यहीन एवं जिनके देवताओंका निरादर हो ऐसे कुत्सित व्रतों-स्नान आचमन और शौच न रखना और केशलुचन करना इत्यादिको अपनी इच्छासे धारण करेंगे। जिसमें अधर्म अधिक है ऐसे कलियुगसे नष्टबुद्धिवाले वेद ब्राह्मण यज्ञ पुरुष (विष्णु ) और संसारकै निन्दक होंगे ।।१०।। जिनके मतका मूल वेद नहीं है, ऐसे वे पुरुष अपनी इच्छाके अनुसार
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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