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________________ ३७४ ** जेलमें मेरा जैनाभ्यास *# [तृतीय कारण उनको पुण्य उपार्जन करना चाहिये । शास्त्रकारोंने पुण्यउपार्जन करने के लिये अनेक मार्ग-साधन बताये हैं । यथा: १ - अन्नका दान, २- पानीका दान, ३ - पात्रका दान, ४मकानका दान, ५ - वस्त्रका दान, ६ - मनसे शुभ चिन्तन करना, ७ - वचनसे शान्ति देना - शरीरसे सेवा आदि करना और ९ - वृद्धों व गुणियों को नमस्कार आदि करना । १- अन्नका दान: सच्चे त्यागी मुनियों-साधुओंका शुद्ध आहार दान देना । इनके अलावा अनाथ, अपाहिज असहाय, विधवा, अकाल पीड़ितों आदिको अन्न दान अर्थात् भोजन देना । २- पानीका दानः सच्चे त्यागी मुनियों-- साधुओंका शुद्ध व चित्त पानी वैराना | इनके अलावा मनुष्यों, पशुओं आदिकलिये प्याऊ आदिका प्रबन्ध करना । " ३- पात्र का दान: सच्चे त्यागी मुनियों-- साधुओंको पात्र ( काष्ठके वर्तन ) आदि देने । इनके अलावा जिन अनाथों, असहायों, बेवाओं, निर्धनों के पास पात्र न हों तो उन्हें पात्र देना । - ४- मकानका दानः- साधु-मुनि सदा भ्रमण किया करते हैं। उनके कोई मकान नहीं होते हैं। अगर वे भ्रमण करते भावें तो उनके ठहरने केलिये
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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