SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवतत्त्व अधिकार (शेषांश) ४-कालास्तिकाय-द्रव्यसे भूत और भविष्यत्कालकी अपेक्षासे अनन्त है, क्षेत्रसे व्यवहारकालकी अपेक्षासे अढ़ाई द्वीप-प्रमाण है और मृत्युकालकी अपेक्षासे लोकाकाश प्रमाण है, कालसे आदि-अन्त रहित है, भावसे वर्णादि-रहित अर्थात् अरूपी है और गुणसे पर्याय-परिवर्तनकारी है। * यह अधिकार द्वितीय खण्डमें दिया गया है। वहाँ यह लगभग ४० पृष्ट से भी अधिक होगया था। पाठकोंको इतना बड़ा एक अधिकार पढ़नेमें अरुचिकर होता। इसलिये वहाँ थोड़ासा देकर यहाँ उसका शेषांश दिया गया है। इसका दूसरा कारण यह भी है कि तृतीय खण्डमें प्राध्यात्मिक विषय रक्खे गये हैं। नवतस्वाधिकारका यह 'शेषांश' प्राध्यात्मिक विषयसे अधिक संबन्ध रखता है। क्योंकि इस 'शेषांश' में मात्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य और पाप, इन सात तस्त्रोंका मुख्यतया वर्णन है । ये सात तत्व मोशामिलापी पुरुष के लिये प्रति उपयोगी है। -सम्पादक।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy