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________________ ३६८ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * तृतीय वेदकसम्यक्त्वके चार भेदः१-जहाँ अनुन्तानुबन्धी चौकड़ीका क्षय और महामिथ्यात्व और मिश्रका उपशम और सम्यक्त्वमोहनीयका उदय हो, उस परिणामको प्रथम क्षयोपशमवेदक सम्यक्त्व कहते हैं। २-जहाँ अनन्तानुबन्धी चौकड़ी और महामिथ्यात्वका क्षय मिश्रका उपशम और सम्यक्त्वमोहनीयका उदय हो. उस परिणामको द्वितीय क्षयोपशमवेदक सम्यक्त्व कहते हैं। ३–जहाँ अनन्तानुबन्धी चौकड़ी, महामिथ्यात्व और मिश्रका क्षय और सम्यक्त्वमोहनीयका उदय हो, उस परिणामको क्षायिक वेदक सम्यक्त्व कहते हैं। ४-जहाँ अनन्तानुबन्धी चौकड़ी, महामिथ्यात्व और मिश्रका उपशम और सम्यक्त्वमोहनीयका उदय हो, उस पदिणामको उपशम वेदक सम्यक्त्व कहते हैं। उपशम तथा क्षायिक दो भेदः १-जो अनन्तानुबन्धी चौकड़ी, महामिथ्यात्व. मिश्र और सम्यक्त्वमोहनीयको उपशमाता है, वह 'औपशमिक सम्यक्दृष्टि है। २-जो अनन्तानुबन्धी चौकड़ी, महामिथ्यात्व, मिश्र और सम्यक्त्वमोहनीयका क्षय करता है, वह 'क्षायिकसम्यग्दृष्टि' है। यह क्षायिकसम्यक्त्व जिनकालिक मनुष्योंको होता है । जो जीव ' श्रायुका बन्ध करनेके बाद इसे प्राप्त करते हैं, वे तीसरे या चौथे भवमें मोक्ष प्राप्त करते हैं; परन्तु अगले भवकी आयु बाँधनेके पहिले
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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