SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६६ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [तृतीय मूढ़ता अर्थात् जिनभाषित धर्मका स्वरूप नहीं समझना, ये तीन मूढ़ताएँ हैं । सम्यक्त्व-नाशके पाँच कारण सम्यक्त्वके घातक मुख्य पाँच कारण ये हैं: - १ - ज्ञानका अभि मान, बुद्धिकी हीनता, निर्दय वचनोंका भाषण, क्रोधी परिणाम और प्रमाद । सम्यक्त्वके पाँच प्रतीचार सम्यक्त्व के पाँच अतिचार हैं। शङ्का, काङ्क्षा, विचिकित्सा, अन्यदृष्टिप्रशंसा और अन्यदृष्टिसंस्तव, ये पाँच सम्यक्त्वके अतिचार हैं। इनका वर्णन पहले किया जा चुका है 1 उपरोक्त पाँच प्रकारके अतिचार सम्यग्दर्शनके उज्ज्वल परिरणामोंको मलीन करते हैं। मोहनीय कर्म की जिन सात प्रकृतियों के अभाव से सम्यग्दर्शन प्रकट होता है । वे निम्न प्रकार हैं: सम्यक्त्वकी घातक चारित्रमोहनीय की चार और दर्शनमोहनीयकी तीन, इस प्रकार सात प्रकृतियाँ हैं। वे इस प्रकार है:१ - अनन्तानुबन्धी क्रोध, २ - अभिमानके रेंगसे रंगी हुई अनन्तानुबन्धी मान, ३ - अनन्तानुबन्धी माया, ४ - परिग्रहको पुष्ट करने वाली अनन्तानुबन्धी लोभ, ५ - मिध्यात्व, ६ - मिश्रमिध्यात्व और ७ - सम्यक्त्वमोहनीय। इनमें से शुरू की छह प्रकृतियाँ व्यात्रिणी
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy