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________________ - खण्ड * गुणस्थान अधिकार * ३६१ ६-तेरहवें और चौदहवें गुणस्थानमें सिर्फ शुक्ल ध्यान ही होता है। लेश्या छह होती हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं: १-कण २-नील ३-कापोत ४-तेज ५-पद्म और ६-शुल लेश्या । प्रत्येक लेश्या असंख्यात लोकाकाश-प्रदेशप्रमाण अध्यवसायस्थान (संल्केश-मिश्रित परिणाम ) रूप है। इसलिये उसके तीत्र, तीव्रतर, तीव्रतमः मन्द, मन्दतर, मन्दतम उतने ही भेद समझने चाहिये। पहली तीन-कृष्ण, नील और कापोत अशुभ लेश्या मानी गई हैं। पिछली तीन-तेज, पद्म और शुक्ल शुभ लेश्या मानी गई है। १-कृष्ण आदि अशुभ लेश्याओंको छठे गुणस्थानमें अति मन्दतम और पहिले गुणस्थानमें अति तीव्रतम मानकर छठे गुणस्थान तक उनका सम्बन्ध होता है। २-सातवें गुणस्थानमें आर्त तथा रौद्र ध्यान न होनेके कारण परिणाम इतने विशुद्ध होते हैं कि जिससे उस गुणस्थानमें अशुभ लेश्याएं सर्वथा नहीं होनी, किन्तु तीन शुभ लेश्याएँ ही होती हैं। ३-पहिले गुणस्थानमें तेज और पद्म लेश्याको प्रति मन्दतम और सातवें गुणस्थानमें अति तीव्रतम; इसी प्रकार शुक्ल लेश्याको २४
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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