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________________ ३३६ * जेल में मेरा जनाभ्यास : [ननीय होजाती है और सदा पौद्गलिक सुखकी खोज की जाती है, यह परिणाम 'नील लेश्या' का है । इस लेश्यामें मरने वाला जीव चौथे नरक तक पहुंचता है और सत्रह सागरकी आयुः स्थिति तक पाता है। ३--कबूतरके गले के समान रक्त तथा कृष्ण वर्णके पुद्गलोंसे इस प्रकारका परिणाम प्रात्मामें उत्पन्न होता है, जिससे बोलने, काम करने और विचारनेमें सब कहीं वक्रता ही वक्रता होती है; किसी विषयमें सरलता नहीं होती; नास्तिकता आती है और दूसरोंको कष्ट हो, ऐसा भाषण करनेकी प्रवृत्ति होती है. यह परिणाम--'कापोत लेश्या'का है । इस लश्यामं मरनेयाला जीव तीसरे नरक तक पहुँचता है और सान सागरकी श्रायुः स्थिति तक पाता है। ४--तोतेकी चोंचके समान रक्त वर्णके लश्या-जातीय पुदगलोस एक प्रकारका आत्मामें परिणाम होता है, जिससे कि नम्रता आ जाती है; शठता दूर हो जाती है: चपलता रुक जाती है; धर्मम रुचि तथा दृढ़ता होती है और लोगोंका हित करनेकी इच्छा होती है, यह परिणाम 'तेजो लेश्या'का है। इस लेश्यामें मरने वाला जीव पहिले दूसरे स्वर्ग तक पहुँचता है और दो सागरको आयुः स्थिति तक पाता है। ५-हल्दीके समान पीले रंगके श्या-जातीय पुद्गलोंसे एक तरहका परिणाम प्रात्मामें होता है, जिससे क्रोध, मान, आदि
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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