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________________ ३३० * जेलमें मेरा जैनाभ्यास - [तृतीय (३) परिहारविशुद्धि संयम-वह है जिसमें परिहार विशुद्धि' नामकी तपस्या की जाती है। परिहारविशुद्धि' तपस्या यह है कि:-- ___ नौ साधुओंका एक गण (समुदाय ) होता है, जिसमेंसे चार तपस्वी बनते हैं और चार उनके परिचारक ( तीन सेवक और एक वाचनाचार्य ) का काम करते हैं। जो तपस्वी हैं, वे ग्रीष्मकालमें जधन्य एक, मध्यम दो और उत्कृष्ट तीन उपवास करते हैं । शीतकालमें जघन्य दो, मध्यम तीन और उत्कृष्ट चार उपवास करते हैं और वर्षाकालमें जघन्य तीन, मध्यम चार और उत्कृष्ट पाँच उपवास करते हैं । तपस्वी पारणा दिन अभिग्रह सहित आयंबिल व्रत करते हैं। यह क्रम छह महीने तक चलता है। ___ दूसरं छह महीने में पहलके तपस्वी तो परिचारक बनते हैं और परिचारक तपस्वी । दूसरे छह महीने में तपम्वी बने हुये साधुओंकी तपम्याका वही क्रम होता है, जो पहिले तपस्वियोंकी तपस्याका होता है। परन्तु जो साधु परिचारक-पद ग्रहण किय हुये होते हैं, वे सदा आयंबिल ही करते हैं। दूसरे छह महीने के बाद, तीसरं छह महीने के लिये वाचनाचार्य ही तपम्वी बनता है: शेष आठ साधुओंमसे कोई एक वाचनाचार्य और बाकी के सब परिचारक होते हैं। इस प्रकार तीसरे छह महीने पूर्ण होने के बाद अठारह मासकी यह 'परिहारविशुद्धि' नामक तपस्या समाप्त होती है।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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