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________________ * जल में मरा जैनाभ्यास * प्रथम रह सदा सत्संग उन्हीका ध्यान उन्हीं का नित्य रहे, उन ही जैली चर्या में यह . चिन सदा अनुरक्त रहे । नहीं सताऊ किमी जायको . मठ कमी नाहे कहा करूं. परधन-बनिन पर न लुभाऊ, संतापामत पिया करू । अहंकारका भाव न रम्य नहीं किसीपर क्रोध करू. दन्न दसरोका बहताका, कभी नी -माय धौ । रह नाना सी मरी, सरल सत्य व्यवहार करू, बने जहा कि इस जीवन में . अंगका उपकार कर ।। मंत्री भाव जगतम मस. सब जाबो मे नित्य रहे. दीन-दुख जीवापर मरे. उन करणाः सात बह । दर्ज कर कमा रतापर. क्षाभ नहीं मसको आवे, साम्यमान कार में उनपर, मा एस हो जावे ।। गणी जनोंको दस्य दयम, मरे म उमर श्रावे, बने जहां तक उनका नवा. कर के, यह मान लख पावे । होऊ नहीं कनान कभी में, द्रोह न मरे उर श्रावे, गण-ग्रहणका भाव रहे नित. हाष्ट न दापोंपर जावे ॥ साई बुरा कहा या अच्छा, लक्ष्मी श्रावे या जावे, लाखों वर्षों तक जाऊ. या मत्यु अाज ही भाजावे ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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