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________________ ३०२ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * तृतीय ऐश्वर्यकी वृद्धि करूँ, जिससे मेरी विषयकामना पूर्ण हो सके और जो सदा कल्पित तरकीबें सोचा करता है, वह विषय संरक्षणानुबन्ध रौद्रध्यान' ध्याया करता है । ___ इस ध्यानके ध्यानेवाला निम्नलिखित अशुभ कर्मोको किया करता है । अगर वह राजा है तो सदा यह विचारा करता है कि किन तरकीबोंसे मैं अपने राज्यकी वृद्धि और शत्रुओंसे रक्षा कर सकता हूँ, इस कारण वह सदा नाना प्रकार के बुरे व घातक विचार मनमें लाया करता है और तरह-तरह की तरकीबें ( 126 ) रचा करता है। इत्यादि। अगर वह धनी है तो मदा विचारा करता है कि किन-किन तरकीबोंसे मैं अपने धनकी वृद्धि कर सकता हूँ और किस प्रकार चोर, डाकुओं और बदमाशास अपनी सम्पत्तिकी रक्षा कर सकता हूँ। इत्यादि। कुछ प्राणी अपने शरीरको पुष्ट करने के विचारसे अखाद्यवस्तुओंका सेवन करते हैं और बुर-बुरे विचार चित्त में लाया करते हैं। इत्यादि । जो प्राणी मदा अपने संरक्षण करने और अन्यको परिताप पहुँचाने की क्रिया अथवा विचार किया करते हैं, वे सदा 'विषयसंरक्षणानुबन्ध' ध्यानको ध्याया करते हैं। गैद्रध्यान ध्यानवाले प्राणी प्रायः चार लक्षण पाये जाते हैं- ' १-हिंसक कार्य करना तथा उनका अनुमोदन करना. २-मूठे कर्म करना तथा उनका अनुमोदन करना, ३-चोरीका कर्म करना
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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