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________________ बएड * मनुष्य-जीवनकी सफलता * २६५ हैं, वे चार घनघाती कर्म अर्थात् ज्ञानवरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और मोहनीय कर्मको क्षय करके केवलज्ञानीके पदको प्राप्त करते हैं । जिसका मतलब यह है कि वे समस्त संसारकी घटनाओं व समस्त जीव मात्रकी अन्तर्गत व भावनाओंको पूर्ण रीतिसे देखते व जानते हैं । अन्त समयमें आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय कर्मको भी क्षय करके अर्थात सर्व प्रकारके कर्मोंसे मुक्त होकर और चौरासी जीवयोनिको छोड़कर निर्वाण पदको प्राप्त करते हैं और सदाकेलिये अपनी आत्माको आवागमनके चक्करसे रहित करते हैं। इस प्रकार वे मनुष्य-जन्म पानका जो उत्कृष्ट-सेउत्कृष्ट उद्देश्य है, वह प्राप्त करते हैं अर्थात् सिद्ध गतिको प्राप्त करते हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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