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________________ २८४ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * तृतीय MARAHMADIRAOMIncommons रात यानी चौबीस घंटेकेलिये ग्रहण किया जा सकता है। यह व्रत अठारह दूषणों रहित किया जाता है। यह ख्याल करके कि कल मुझे प्रोषध करना है। इसलिये । आज मैं खूब खालू या नहा लूँ या अमुक काम कलके बजाय आज कर लू, इत्यादि प्रकारकी सावध क्रिया करनेसे दूषण लगता है । इस व्रतमें मन, वचन और कायसे पटकायका अर्थात् सर्व प्रकारकी हिंसाका त्याग किया जाता है । क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कपायोंका सर्वथा त्याग किया जाता है। किसी प्रकारकी खाने, पीने या लगानेकी कोई भी वस्तु उपयोगमें नहीं लाई जा सकती। प्रमादरहित धर्मध्यान ध्याना पड़ता है। इस प्रतमें दिन में मोना या कोई निठल्लेपनकी बातें करना निषिद्ध हैं। स्नान, कुल्ला प्रादि नहीं किया जाता है। बिछाने व अोढ़ने के मामूली वन रक्खे जाते हैं, जिनको अच्छी प्रकार देख-भाल करके इस्तेमालमें लाया जाता है, ताकि किसी जीव-जन्तुकी बिराधना न हो जाय । लघुनीत श्रादिकेलिये भूमि देखकर रक्खी जाती है। यह प्रोषध एकान्तस्थान या प्रोषधशालामें किया जाता है। किसी प्रकारकी सावद्य क्रिया करनेका इसमें निषेध है। सुबह-शाम प्रतिक्रमण किया जाता है। इस बातका विशेष ध्यान रखा जाता है कि किसी प्रकारकी हिंसा न हो और चित्त शान्त रहे । इसमें तमाम सांसारिक झंझटोंसे मुक्त हो । जाना पड़ता है।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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