SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८० * जेल में मेरा जैनाभ्यास * तृतीय - - जब मनुष्य अपने दिन-रातके चौबीस घण्टे दुनियादारीके कामों में लगाता है, तो कुछ समय उसको शुभ विचार, शुभ ध्यान और ईश्वर-चिन्तनमें अवश्य देना चाहिये । जो मनुष्य अपना थोड़ा बहुत समय परभवकेलिये नहीं देता है, उसको अन्त समयमें बड़ा पश्चात्ताप करना पड़ता है। ___ इस सामायिक व्रतका मन्तव्य यह है कि प्रत्येक मनुष्यको कम-से-कम एक और ज्यादा हो तो और भी अच्छा है, सामायिक करनी चाहिये । एक सामायिकका काल एक मुहूर्त अथवा अड़तालीस मिनटका होता है। उतने समयकेलिये सांसारिक सारे कार्योंको छोड़ देना पड़ता है। सामायिक करनेवाले व्यक्ति को उस समयमें शुभ विचार अर्थात् धर्मध्यान करते रहना चाहिये या शास्त्रों का पठन-पाठन करते रहना चाहिये । सामायिक करनेवाले व्यक्तिको मन, वचन और कायसे सर्व प्रकार की हिंसा, इन्द्रियविषय, बुरे विचार, हँसी-मसखरी, सावद्य क्रिया आदि सभी प्रकारके सांसारिक कार्यका त्याग करना पड़ता है। और व्रतोंकी भाँति सामायिकके भी पाँच अतीचार होते हैं, जो कि त्यागने योग्य हैं। संक्षेपमें उनका स्वरूप यह है: १-मनमें आर्तध्यान या रौद्रध्यान का चिन्तन करना; २-वचनसे सावध वचन बोलना; ३-कायसे सावध कार्य ॐ "वाक्कायमानसानां, दुःप्रणिधानान्यनादरस्मरणे । सामायिकस्यातिगमाः म्यान्ते पञ्चमावेन ॥" -स्वामी समन्तभद्राचार्य।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy