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________________ २७४ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * तृतीय - -- ५-स्फोट कर्म-आटा, दाल. चावल आदि मील द्वारा तैयार करवाना; कुँा. सरोवर. मिट्टी, पत्थर इत्यादि खुदवाना । ६-दन्त वाणिज्य-हाथीदान, हड्डी, चमड़ा. मोरछल, सीप, मोती, कस्तूरी आदिका व्यापार करना । ७-लक्षवाणिज्य-लाम्व. नील, हरताल महागा, सायन, आदिको बनवाना या व्यापार करना । -रसवाणिज्य-मायन, चरवी मॉम. मधु, मदिरा, घी, तेल, आदिका व्यापार करना । -कंशवाणिज्य-दान. दासी बल, गाय, घोड़ा श्रादिका व्यापार करना। -विषवाणिज्य-विष, शम्नान, इल श्रादि पदार्थों का क्रय-विक्रय करना। ११-यन्त्रपीड़न कम-निन्त, मरनों प्रादि पदायों को घागी में परना या पिरवाना। १२-नलच्छिन्नकर्म-गाय, बैल श्रादिक कान, मांग, पंछ, आदि काटना या उनको अकता कगना, दागना आदि । १३-असतीपोपण---मुआ, मंना, बिल्ली, कुना, मुगा, मयुर आदि जानवरोको पालना या रनका व्यापार करना । २५-दवदान-क्रोधके वश या उपज अच्छी करने के लिये जंगल में आग लगाना।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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