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________________ घराड * मनप्य-जीवन की सफलता * आवश्यकताओं की पूर्तिमात्र कर लें। इसलिये यों कहना चाहिये कि इच्छाओंका निरोध करना-कम करना संसारको घटाना ई-सांसारिक बन्धनको कम करना है-पापांका काटना है और मनुष्य जन्मको सफल बनाना है। ठा व्रत जिसको पहिला गुणावत भी कहते हैं 'दिग्बन है। इसका अर्थ है दिशाओंकी मयादा करना ! इस व्रतद्वारा दिशा अर्थात नेत्रकी मर्यादा की जाती है। जो मनुष्य इस व्रतको ग्रहमा नहीं करते हैं, उनको मंमार के तमाम क्षेत्र व दिशाओंका दूपणा आया करता है। __ पूर्व पश्चिम. उत्तर दक्षिगा. इशान, आग्नेय. नैऋत्य, वायव्य. ऊव और अधः दम तरद दश दिशाग हैं। इनका चितार हजार कोल नहीं लास्व काम नहीं, बल्कि करोड़ों कोस में भी कहीं अधिक है। वनमान समय में मनुष्यको अधिक-मेंअधिक एक स्थानमें दुमरे म्यान नक मिक हजागे कोसको मयादा के अन्दर ही प्रायः जाना-पाना पड़ता है। इस कारण प्रत्येक प्राणीको जहांतक कम दिशाओंकी मर्यादा कर सकता है, में उतना रखकर बात का त्याग कर देना चाहिये । लेकिन जो प्रतिज्ञा की जाय, उसका पालन करना परम आवश्यक है। अगर कोई प्रतिज्ञा करके उसका भङ्ग करता है तो वह विशेष मंमार बढ़ाता है अर्थात मनुष्य-जीवनको नष्ट करता है। मनुष्य को अपने कारबार या व्यापारका पूरी तौरसे ध्यान रखते हुए
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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