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________________ ars ] * मनुष्य जीवनकी सफलता * २६५ अर्थात अमिके आधारसे प्राणियोंका बल है और वीर्यके आधारसे प्राणियों का जीवन है। इसलिये अग्नि और वीर्यको बड़ी सावधानी से मनुष्योंको रक्षा करते रहना चाहिये । ब्रह्मचयेसे मनुष्यका शरीर नोरोग और स्फूर्तिमान रहता है; इन्द्रियाँ शक्तिहीन नहीं होती: दिमाग्र काम दुरुस्त करता है। स्मरण शक्ति श्राश्रयंजनक होती है; शरीर कान्तिमान और आकृति देदीप्यमान होती है; कलाओं में निपुणता प्राप्त होती है; ब्रह्मचर्य से मनुष्य प्राप वैभवका पूर्ण भोग कर सकता है, जीवन-संग्राम में विजयी होता है. संसार सागर से पार उतर सकता है और संसार वह एक प्रसिद्ध पुरुष हो सकता है। संसार में जितने प्रसिद्ध प्रसिद्ध दार्शनिक कवि, पहलवान, कलावान धनवान आदि हो गये हैं. वे सब एक इसी ब्रह्मचर्य के प्रतापसे । यदि ये लोग ब्रह्मचर्य को नहीं अपनाते तो आज हमें उनका नाम तक सुनाई नहीं देता । संसार में जितने साधु-सन्यासी ऋषि महर्षि हो गये हैं, जिन्होंने कि तप तप हैं, ग्रन्थ लिखे हैं, नाना प्रकारकी सिद्धियाँ ग्राम की हैं, गिरि-कन्दराओं या वनों रहकर अनेक प्रकारकी परिप सही हैं, वह सब एक इसी ब्रह्मचर्यकी अतुल महिमा के प्रतापसे । 2. जो लोग इस व्रत का पालन नहीं करते, वे अपने जीवन में कुछ भी सुख नहीं भोग सकते, न कोई संसार में अपने जीवनकी
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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