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________________ १५८ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * [द्वितीय ....... ...mannrnmowinnnnanorma - (ग) कषायके पञ्चीस भेद हैं। वे निम्न प्रकार हैं: क्रोध, मान, माया और लोभ, ये चार भेद हैं। इनमेंसे हर एकके चार-चार भेद होते हैं। वे इस प्रकार हैं:-१-संज्वलन, २-प्रत्याख्यानावरण, ३-अप्रत्याख्यानावरण और ४-अनन्तानुबन्धी। इस प्रकार चार कषायोंके ४४४ सोलह भेद होते हैं। इनके अलावा नोकपायमोहनीयके नौ भेद और होते हैं। वे इस प्रकार हैं: १-हास्य, २-रति, ३-अरति, ४-शोक, ५-भय, ६-जुगुप्सा, ७-खीवेद, ८-पुरुषवेद और ई-नपुंसकवेद । (घ) योगके पन्द्रह भेद होते हैं। वे निम्न प्रकार हैं:१- सत्यमनोयोग, २-असत्यमनोयोग, ३-मिश्रमनोयोग और ४-व्यवहारमनोयोग, ये चार भेद मनोयोगके हैं। -सत्यवचनयोग, २-असत्यवचनयोग, ३ -मिश्रवचनयोग और ४-व्यवहार वचन योग-य चार भेद वचनयोगके हैं। १-वैक्रियशरीरकाययोग, २-श्राहारिकशरीरकाययोग, ३-औदारिकशरीरकाययोग, ४-वैक्रियकमिश्रकाययोग, ५-आहारिकमिश्रकाययोग, ६-औदारिकमिश्रकाययोग और ७--कार्मणशरीरकाययोग, इस प्रकार काययोगके सात भेद होते हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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