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________________ खण्ड * कर्म अधिकार * १५३. - ___३-मोहनीय कर्म जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट सत्तर क्रोड़ाक्रोड़ सागर और अबाधाकाल जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट सात हजार वर्षका। ४-श्रायु कर्मका स्थिति-प्रमाण अर्थात् जबतक जीव जीवे तबतक। ५-नाम और गोत्र कर्म-जघन्य आठ मुहूर्त, उत्कृष्ट बीस कोडाक्रोड सागर और अबाधाकाल दो हजार वर्षका । मुख्य कर्मोके दूर होनेका क्या परिणाम होता है ? कर्म दो प्रकारके होते हैं-एक घातिक दूसरे अघातिक । घातिक कर्म चार हैं: १-ज्ञानावरणीय, २-दर्शनावरणीय, ३-अन्तराय और ४-मोहनीय। अघातिक कर्म भी चार होते हैं:१-वेदनीय,२ -गोत्र, ३-नाम और ४-आयु । ज्ञानावरण कर्मके अभावसे अनन्त ज्ञान । २-दर्शनावरण कर्मके अभावसे अनन्त दर्शन । ३-अन्तराय कर्मके अभावसे अनन्तवीर्य । ४-दर्शनमोहनीय कर्मके अभावसे शुद्ध सम्यक्त्व और चारित्रमोहनीय कर्मके अभावसे शुद्ध चारित्र होता है अर्थात् इन समस्त कर्मों के अभावसे अनन्त सुख होता है । मगर शेष चार कमोंके बाकी रहनेसे जीव ऐसी ही जीवन्मुक्त अवस्थामें संसारमें रहता है और इसी अवस्था
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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