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________________ १५० * जेल में मेरा जनाभ्यास * [ द्वितीय अशुभ अशुभ कर्म बाँधता है । अतएव शुभ और कर्म - बन्धकी सच्ची कसौटी केवल ऊपर की क्रिया नहीं है, किन्तु उसकी यथार्थ कसौटी कर्त्ताका आशय है, अर्थात् अच्छे आशय से जो काम किया जाता है, उससे शुभ कर्मका बन्ध होता है और जो बुरे आशय से किया जाता है, उससे अशुभ कर्मका बन्ध होता है। अशुभ कर्मोंका बन्ध साधारण लोग यह समझते हैं कि अमुक काम करनेसे अशुभ कर्मका बन्ध न होगा। इससे वे उस कामको तो छोड़ देते हैं, पर बहुधा उनकी मानसिक क्रिया नहीं छूटती । इससे साधारण रूपमें क्रिया न करते हुए भी वे करते रहते हैं । अतएव विचारना चाहिये कि सच्ची निर्लेपता क्या है ? लेप (बन्ध ) मानसिक क्षोभको अर्थात् कषायको कहते हैं । यदि कषाय नहीं है तो ऊपरकी कोई भी क्रिया श्रात्माको बन्धमें रखनेकेलिये समर्थ नहीं है । इससे उलटा यदि कषायका वेग भीतर वर्त्तमान है तो ऊपर हजार प्रयत्न करनेपर भी कोई जीव अपनी आत्माको कर्म-बन्धसे छुड़ा नहीं सकता । कर्म से सम्बन्ध रखनेवाली विशेष बातें: १ -- बन्ध, २ – उदय, ३ - उदीरणा, ४ – सत्ता, ५ - अपवर्तना-करण, ६ – उदयकाल, ७- अबाधाकाल, ८ --संक्रमण, और ६- निर्जरा ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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