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________________ खण्ड * कर्म अधिकार * १३६ - _____ इन कर्म-वर्गों में बन्धके चार विशेषण होते हैं। वे निम्न प्रकार हैं: एक प्रकृतिबन्ध, जिसके अनुसार कर्म-वर्गामें भिन्न-भिन्न प्रकारकी शक्तियाँ होती हैं । दूसरा प्रदेशबन्ध, जिसके अनुसार आत्म-प्रदेशोंमें कम-प्रदेशों का सम्बन्ध होता है। तीसरा स्थितिबन्ध, जिसके अनुसार कर्म-वर्गों की सत्ता या उदयकालका प्रमाण होता है। चौथा अनुभागबन्ध, जिसके अनुसार कर्मवर्गों में फलदायक शक्ति उत्पन्न होती है। प्रकृति और प्रदेश-बन्ध योगोंके अनुसार होते हैं और स्थिति और अनुभाग-बन्ध कषायोंके अनुसार होते हैं । जीवके भावों की हालत, योग और कपायोंका जैसा फल होता है, वैसी होती है। दृष्टान्त और दार्शन्तिकमें प्रकृति, स्थिति, रस और प्रदेशबन्धका स्वरूप यों समझना चाहिये: वात-नाशक पदार्थोंसे-सोंठ, मिर्च, पीपल आदिसे बने हुये लड्डुओंका स्वभाव जिस प्रकार वायुके नाश करनेका है; पित्तनाशक पदार्थासे बने हुये लड्डुओंका स्वभाव जिस प्रकार पित्तके दूर करनेका है; कफनाशक पदार्थोसे बने हुये लड्डुओंका स्वभाव जिस प्रकार कफके नष्ट करनेका है, उसी प्रकार आत्माके द्वारा ग्रहण किये हुए कुछ कर्म-पुद्गलोंमें प्रात्माके ज्ञान-गुणके घात करनेकी शक्ति उत्पन्न होती है; कुछ कर्म-पुद्गलों में आत्माके
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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