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________________ १३२ * जेल में मेरा जैनाभ्यास # [द्वितीय १ – बाह्य निमित्तों से जो आयु कम हो जाती हैं, उस आयुको 'अपवर्त्तनीय' अथवा 'अपवर्त्य' आय कहते हैं । जैसे जलमें · डूबकर मरना, आग में जलकर मरना, ज़हर खाकर मरना या शस्त्रकी चोटसे मरना आदि । २ - जो आयु किसी भी कारण से कम न हो सके अर्थात् जितने काल तककी पहिले बँध गई है उतने काल तक भोगी जावे, उस आयुको 'अनपवर्त्य आयु' कहते हैं । च - नामकर्म: नामकर्म चित्रकार के समान है। जैसे चित्रकार नाना भाँतिके मनुष्य, हाथी, घोड़े आदिको चित्रित करता है, ऐसे ही नामकर्म नाना भाँति के देव, मनुष्य, नारकोंकी रचना करता है । नामकर्मकी संख्या कई अपेक्षासे है - किसीसे ४२, किसीसे ६३, किसीसे १०३ और किसीसे ६३ भेद होते हैं । नामकर्मको पिण्डप्रकृतियोंके मुख्य चौदह भेद हैं । वे निम्न प्रकार हैं: १ - गतिनाम, २ - जातिनाम, ३- तनुनाम, ४ - अङ्गोपाङ्गनाम, ५- बन्धनाम, ६- सङ्घातनाम, ७ - संहनननाम, ८-संस्थाननाम, ६ - वर्णनाम, १० - गन्धनाम, ११ - रसनाम, १२ - स्पर्शनाम, १३- आनुपूर्वीनाम और १४ - विहायोगति नाम । १ - जिस कर्म के उदय से जीव नरक, देव आदि अवस्थाओं को प्राप्त करता है, उसे 'गतिनाम कर्म' कहते हैं। इसके चार भेद हैं
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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