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________________ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [द्वितीय ३-जिस कषायके उदयसे मुनि-धर्मकी प्राप्ति नहीं होती, उसे 'प्रत्याख्यानावरण कषाय' कहते हैं। जिस प्रकारसे धूलमें लकीर खींचनेपर कुछ समयमें हवा चलनेपर मिट जाती है, उसी प्रकार यह कषाय कुछ उपायसे शान्त हो जाती है। ___४-जो कषाय परिषह तथा उपसर्गों के आ जानेपर मुनियों को भी थोड़ासा चलायमान कर देती है अर्थात् उनपर भी थोड़ासा असर जमाती है, उसे 'संज्वलन कपाय' कहते हैं। जिस प्रकारसे पानीमें लकीर खींचनेसे वह फौरन मिट जाती है, उसी प्रकार यह कषाय शीघ्र ही शान्त हो जाती है। कषाय चार प्रकारके हैं:-क्रोध, मान, माया और लोभ । प्रत्येक कषाय ऊपर वर्णन किये चार-चार प्रकारके होते हैं। इस प्रकार चारको चारसे गुणा करनेसे कषायके १६भेद होते हैं। (२) नोकपाय मोहनीयकं नौ भेद इस प्रकार होते हैं: १-जिस कर्मके उदयसे कारणवश अर्थात् भाँड़ आदिकी चेष्टाको देखकर अथवा बिना कारण हमी आती है, वह 'हाम्यमोहनीय कर्म' कहलाता है। २-जिस कर्मके उदयसे कारणवश अथवा बिना कारण पदार्थोमें अनुरागहो-प्रेम हो, वह 'रतिमोहनीय कर्म' कहलाता है । ३-जिस कर्मके उदयसे कारणवश अथवा बिना कारण पदार्थोंसे अप्रीति हो, वह 'अरतिमोहनीय कर्म' कहलाता है।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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