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________________ खण्ड * कर्म अधिकार * ११६ और स्वादिष्ट लगता है, पर खानेके बाद प्राणी कालको प्राप्त होजाता है; इसी प्रकार यह शुभ कर्म अानन्द और सुख देनेवाला है, पर इसका परिणाम बुरा होता है। इस कारण यह शुभ कर्म भी त्यागने योग्य है। ___कर्म-शत्रुको प्रबलता कर्म बड़े-बड़े और महान-महान् आत्माको, जैसे-ऋषि, मुनि और त्यागियोंको, यहाँ तक कि जो आत्मा अरिहन्त होनेको जा रही है उनको और सांसारिक बड़े-बड़े पुरुष जैसे चक्रवर्ती, बलदेव वा वासुदेवको कष्ट, दुःख व सन्ताप देने में नहीं चूकता है तो हम साधारण पुरुषोंकी तो क्या चलाई। कर्म किसीकी रियायत नहीं करता, चाहे वह महान् पुरुष हो या कोई छोटा जीव हो । हाँ, यह बात अवश्य है कि कर्मों का चूर्ण अथवा नाश किया जा सकता है। जिस प्रकार कर्म अपने कर्तव्यमें नहीं चूकते, उसी प्रकार त्यागी, पुरुषार्थी और महान् आत्मा इसको चूर-चूर अथवा नष्ट करने में नहीं चूकते। ___ काँसे छूटनेका मुख्य गुरु १-पहिले बुरे, नीच और त्याज्य कर्मोंका करना छोड़ दो ताकि अशुभ यानी पाप कर्मका बन्ध न हो। ___२-बँधे हुये कर्मोंका नाश ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तपस्या आदि विधियोंसे कर दो अर्थात् जला दो।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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