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________________ निक्षेप अधिकार म सी भी वस्तुमें गुणावगुणका आरोप निक्षेपों * द्वारा होता है। जैनदर्शनमें चार निक्षेप हैं। वे इस भाँति हैं : १-नाम, २-स्थापना, ३-द्रव्य और ४-भाव । १-गुण, जाति, द्रव्य और क्रियाकी अपेक्षा बिना ही अपनी इच्छानुसार लोक-व्यवहारकेलिये किसी पदार्थकी संज्ञा करनेको 'नामनिक्षेप' कहते हैं। जैसे-किसी पुरुपका नाम इन्द्रराज है, परन्तु उसमें इन्द्रकं समान गुण, जाति, द्रव्य, क्रिया कुछ भी नहीं है; उसके माता-पिताने केवल व्यवहारार्थ नाम रख लिया है या दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिये कि गुण, जाति, द्रव्य, क्रियाकी अपेक्षासे जो नाम नहीं रक्खे जाते हैं, उन्हींको नामनिक्षेप कहते हैं। ____२-धातु, काष्ट, पाषाण, मिट्टीके खिलौने, चित्रादि, शतरंजके हाथी, घोड़ा, बादशाह इत्यादिमें श्राकार-रूप व बिना आकार-रूप कल्पना कर लेनेको 'स्थापनानिक्षेप' कहते हैं। (१) फोटो या मूर्ति जिससे उस वस्तुका भान होवे, उसे 'सद्भावस्थापना' या 'तदाकारस्थापना' कहते हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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