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________________ खण्ड] * नय अधिकार * १०३ नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवम्भूतनय । नैगम-इसका अर्थ है संकल्प-कल्पना। कल्पनासे जो वस्तु व्यवहार में आती है, वह 'नैगमनय' कहलाता है। यह नय तीन प्रकारका होता है-भूत नैगम, भविष्य नैगम और वर्तमान नेगम । जो वस्तु हो चुकी है उसका वर्तमान रूपमें व्यवहार करना भूत नैगम है। जैसे-आज वही दिवालीका दिन है कि जिस दिन महावीर भगवान् मोक्ष गये थे। यह भूतकालका वर्तमान में उपचार है। महावीरके निर्वाणका दिन आज (दिवालीका दिन ) मान लिया जाता है। इस तरह भूतकालके वर्तमानमें उपचारकं अनेक उदाहरण हैं। होनेवाली वस्तुको हुई कहना भविष्य नंगम है । जैस-चावल पूरे पके न हों, पक जानेमें थोड़ी ही देर रही हो तो उस समय कहा जाता है कि चावल पक गये हैं। ऐसे वाक्य व्यवहारमें प्रचलित हैं। अथवा अहंतदेवको मुक्त होनेके पहिले ही कहा जाता है कि मुक्त होगये, यह भविष्य नैगमनय है। ईंधन, पानी आदि चावल पकानेका सामान इकट्ठा करते हुये मनुष्यको कोई पूछे कि तुम क्या करते हो ? वह उत्तर दे कि मैं चावल पकाता हूँ--यह उत्तर वर्तमान नैगमनय है, क्योंकि चावल पकाने की क्रिया यद्यपि वर्तमान में प्रारम्भ नहीं हुई है तो भी वह वर्तमान रूपमें बताई गई है। ___ संग्रह - सामान्यतया वस्तुओं का समुच्चय करके कथन करना संग्रहनय है। जैसे-सारे शरीरों में आत्मा एक है। इस कथनसे
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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