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________________ हैं, कोई बन्धन नहीं । जो दिन-रात पठन व्याख्यान आदिमें ही रत रहते हैं, वे यदि अपनी शक्तिका उपयोग कैसे करना-यह बात इस छोटीसी पुस्तकसे सीख लें, तो समाजका भावी उज्ज्वल होनमें कोई सन्देह नहीं है। साधारण जैन शास्त्रके व्यापक जिज्ञासुकेलिये यह पुस्तक पर्याप्त है । क्योंकि इसके द्वारा उसे अनेक विषयगामी जैन विचार एक ही पुस्तकसे मिल सकेंगे। इसमें यदि विशेषता है तो यही है कि जैन परम्परा तथा शाषकी अनेक विषयगत चर्चा इस एक ही पुस्तकमें आ गई है। निःसन्देह इसके तीन खण्डों मेंसे मुख्यतः दूसरा खण्ड ऐसा है-जिसमें न तो सब लोगोंकी गति ही हो सकती है, और न सब लोगोंकी रसवृत्ति ही पुष्ट हो सकती है। फिर भी इसके पहले और तीसरे खण्डके कुछ अधिकार सर्व साधारण केलिये भी रोचक और पढ़ने योग्य है । जैसे-'संस्कार', 'जैनधर्मकी प्राचीनता' और 'कुछ वाक्य-रत्न', इत्यादि। ___ जेलसे बाहर आनेके बाद सेठजीको यदि अवकाश मिलता, तो वे इसे फिरसे ध्यान पूर्वक पढ़कर प्रत्येक विषयका विशेष चिन्तन कर ऐसा सुधार करते कि जिससे न तो पुनरुक्तियाँ पाती, और न थोड़ी-बहुत दीखनेवाली विषय-विशृङ्खलता ही रहने पाती। अनेकविध प्रवृत्तिओंका भार सिरपर लेकर चलनेवाले सेठजीने यही उचित समझा कि अभी तक जो कुछ संगृहीत हुआ, और जिस रूपमें हुआ, वह चिरकालकेलिये यों ही पड़ा रहनेकी बजाय, प्रकाशित हो जाय, यही अच्छा है ।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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