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________________ 8. * जेल में मेरा जैनाभ्यास [द्वितीय ANWAAAAAAAA ....... ............ ....Anas कोई जीव पदार्थको अस्ति स्वरूप और कोई जीव पदार्थको नास्ति रूप कहते हैं। अद्वैतवादी जीवको एक ब्रह्म रूप कहते हैं, नैयायिक जीवको अनेक रूप कहते हैं, बौद्ध मतवाले जीवको अनित्य कहते हैं, सांख्य मतवाले शास्वत अर्थात् नित्य कहते हैं। पर ये सब परस्पर-विरुद्ध हैं, कोई किसीसे नहीं मिलते, पर स्याद्वादी सब नयोंको अविरुद्ध साधता है। प्रश्न-जगत्में जीव स्वाधीन है कि पराधीन ? जीव एक है अथवा अनेक ? जीव सदा काल है अथवा कभी जगत्में नहीं रहता है ? जीव अविनाशी है अथवा नाशवान है ? उत्तर-द्रव्य-दृष्टिसे देखो तो जीव स्वाधीन है, एक है, सदा काल है और अविनाशी है । पर्याय-दृष्टि से पराधीन, अनेक रूप, क्षणभङ्गुर और नाशवान् है । अतः जहाँ जिस अपेक्षासे कहा गया है, उसे प्रमाण करना चाहिये । जब जीवकी कर्म-रहित शुद्ध अवस्थापर दृष्टि डाली जाती है, तब वह स्वाधीन है; जब उसकी कर्माधोन दशापर ध्यान दिया जाता है, तब वह पराधीन है । लक्षणकी दृष्टिसे सब जीव द्रव्य एक है; संख्याकी दृष्टि से अनेक हैं। जीव था, जीव है, जीव रहेगा, इस दृष्टिसे जीव सदा काल है; जीव गतिसे गत्यन्तरमें जाता है, इसलिये एक गतिमें सदा काल नहीं है । जीव पदार्थ कभी नष्ट नहीं होता, इसलिये वह अविनाशी है; क्षण-क्षणमें परिणमन करता है, इसलिये वह भनित्य है। जैनदर्शन एक ही
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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