SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [५८] कन्या है या बालक है। ऐसी दशा में हीजड़ा को क्या समझा जाय ? उसके तो कन्या के समान योनि रूप चिन्ह भी नहीं होता है और पुरुष के समान लिंग भी नहीं होता है, तब वह हीजड़ा प्रो० सा० की समझ के अनुसार कौन से लिंग में लिया जायगा ? जो बात बिलकुल प्रत्यक्ष सिद्ध है जिसके सर्वत्र हजारों दृष्टान्त हैं उस प्रत्यक्ष नपुंसक के रहते हुए भी प्रो० सा० कहते हैं कि 'द्रव्य स्त्री और द्रव्य पुरुष के सिवा कोई नपुंसक द्रव्य लिंग होता ही नहीं है।' बहुत आश्चर्य की बात है। इसके सिवा यह भी प्रत्यक्ष बात है कि जो द्रव्यस्त्री है वह द्रव्यपुरुष के साथ रमण करना चाहती है, जो द्रव्यपुरुष है वह द्रव्यस्त्री के साथ रमण करना चाहता है। तथा जो द्रव्य नपुंसक है वह द्रव्यस्त्री और द्रव्यपुरुष दोनों के साथ रमण करने की अभिलाषा रखता है। इसके सिवा इन तीनों द्रव्यलिंग वालों की कामाग्नि का संतुलन शास्त्रकारों ने तीन प्रकार की अग्नि से किया है। यथा "णेवित्थी व पुमं उसो उहयलिंगविदिरित्तो। इट्ठावग्गि समाणग वेदणगुरुओ कलुसचित्तो। तिणकारिसिट्टपाग्गिसरिसपरिणाम वेदणुम्मुक्का"। (गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा २७४-२७५) अर्थ-जो न तो स्त्री हो और न पुरुष हो ऐसे दोनों ही लिंगों से रहित जीव को नपुंसक कहते हैं। इस नपुंसक
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy