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________________ [ ४१ ] वेद के साथ क्षपक श्रेणी चढ़ सकता है। किन्तु यह व्याख्यान सन्तोषजनक नहीं है ।" प्रो० सा० की उपर्युक्त पंक्तियों से ही यह बात स्पष्ट हो जाती है कि जो तीनों वेदों से चादहों गुरणस्थानों की प्राप्ति सर्वार्थ सिद्धि गोम्मटसारकार ने बताई है वह भाववेद से ही बताई है। जैसा कि वे स्वयं ऊपर की पंक्ति में लिखते हैं। कि- " किन्तु इन ग्रन्थों में संकेत यह किया गया है कि यह बात केवल भाव वेद की अपेक्षा से घटित होती है ।" अब कि इस सम्बन्ध में और क्या स्पष्ट किया जाय। जब भाववेदसे ही चौदहों गुणस्थान होते हैं तब द्रव्यस्त्रीवेदसे चौदह गुणस्थान और मोक्ष सर्वथा असम्भव है । यह बात इन ग्रन्थों से सिद्ध हो जाती है । सर्वार्थ सिद्धि के प्रमाण से यह बात और भी स्पष्ट हो जाती है कि द्रव्य-स्त्री को क्षायिक सम्यग्दर्शन भी नहीं होता है, वह भाववेद की अपेक्षा से ही बताया गया है यथा ―― मानुषीणां त्रितयमप्यस्ति पर्याप्तकानामेव, नाsपर्यातकानाम्, क्षायिकं पुनर्भाववेदेनैव || ( सर्वार्थ सिद्धि पृष्ठ ११ ) इसका अर्थ यह है कि सम्यग्दर्शन के प्रकरण में यह बात बताई गई है कि मनुष्यरणी के तीनों सम्यक्त्व पर्याप्त अवस्था में ही होते हैं, अपर्याप्त अवस्था में नहीं होते हैं । परन्तु इतनी विशेषता है कि क्षायिक सम्यग्दर्शन तो भाववेद
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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