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________________ [३६] ही हो सकते हैं। द्रव्य स्त्री के तो संयम ही नहीं हो सकता है क्योंकि द्रव्य स्त्री वस्त्र सहित रहती है, और सवस्त्र अवस्था में संयम भाव (छठा गुणस्थान ) नहीं हो सकता है। जब संयम भाव ( छठा गुणस्थान ) ही द्रव्य स्त्रीके नहीं बन सकता तब संयम की प्राप्ति के बिना मोक्ष प्राप्ति किस प्रकार उनके हो सकती है ? अर्थात द्रव्य स्त्री के संयम के अभाव में मोक्ष कदापि सिद्ध नहीं हो सकती है। द्रव्य स्त्री के संयमासंयम पांचवां गुणस्थान ही अधिक से अधिक हो सकता है। इतना ग्वुलासा होने पर भी धवला टीकाकार इसी ६३ वे सूत्र की टोका में आगे और भी स्पष्ट करते हैं "भाववेदो बादरकषायानोपर्यस्तीति न तत्र चतुर्दश गुणस्थानानां संभव इति चेन्न, अत्र वेदस्य प्राधान्याभावात् । गतिस्तु प्रधाना नसाऽऽराद्विनस्यति । वेदविशेषणायां गतौ न तानि संभवन्तीति चेन्न विनष्टेपि विशेषणे उपचारेण तद्वयपदेशमादधानमनुष्यगतौ तत्सत्वाऽविरोधात् ।” (षद् खण्डागम, सत्प्ररूपणा, प्रथम खण्ड, धवला टीका पृष्ठ ३३३) इसका हिन्दी अर्थ इस प्रकार है शंकाकार का यह कहना है कि जब शास्त्रकार भाव-- स्त्री वेद की अपेक्षा चौदह गुणस्थान बताते हैं तो भाववेद तो बादर कषाय (नौवें गुणस्थान) तक ही रहता है, उसके ऊपर भाववेद नष्ट हो जाता है अर्थात् नौवें गुणस्थान के उपर भाव
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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