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________________ [ ३३ ] धवला टीका के सत्प्ररूपणा सूत्र ६३ का प्रमाण दिया है। प्रो० सा यह समझ रहे हैं कि मनुष्यनी से द्रव्य स्त्री का ग्रहण है और मनुष्यनो के चौदह गुणस्थान बतलाये गये हैं तो द्रव्य स्त्रीके मोक्षकी प्राप्ति सहज सिद्ध है। परन्तु जिस सत्प्ररूपणा के ६३६ सूत्र का प्रो० सा० ने द्रव्यस्त्री की मोक्ष प्राप्ति में प्रमाण दिया है उसी सूत्र में स्पष्ट रूप से द्रव्यस्त्री को मोक्ष प्राप्ति का सर्वथा निषेध किया गया है। यहां पर उसी प्रकरण को पाठकों की जानकारी के लिये ज्यों का त्यों रख देते हैं सम्मामिच्छाइट्ठि-असंजदसम्माइट्ठिमंजदासंजद-ठाणे णियमा पज्जत्तियाओ ।। (६३ सूत्र सत्प्ररूपणा प्रथम खण्ड) इस सूत्र का अर्थ पट् खण्डागम में यह लिखा गया है कि मनुष्य स्त्रियां सम्यमिथ्यादृष्टि, असंयत सम्यग्दृष्टि, संयतासंयत और संयत गुणस्थानों में नियम से पर्याप्तक होती हैं। इस सूत्रकी व्याख्या धवला टीका में इस प्रकार की गई है "हुण्डावसर्पिण्यां स्त्रीपु सम्यग्दृष्टयः किन्नोत्पद्यन्त इति चेन्न, उत्पद्यन्ते । कुतोऽ वसीयते ? अस्मादेवाऽऽर्षात् । अस्मादेवार्षाद् द्रव्य-स्त्रीणां निवृत्तिः सिद्धयोदितिचेन, सवासस्त्वादप्रत्याख्यान-गुणस्थितानां संयमानुपपत्तेः । भावसंयमस्तासां सवाससामपि अविरुद्ध इतिचेत्, न तासां भावसंयमोस्ति, भावाऽसंयमाऽक्निाभावि-वस्त्राद्यपादानान्यथानुपपत्तेः। कथं
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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