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________________ [ २६ ] शास्त्रों में ही स्त्री-मुक्ति, सबस्त्र - मुक्ति आदि का स्पष्ट रूप से खण्डन किया गया है । जैसा कि हम आगे स्पष्ट करने वाले हैं तब वैसी अवस्था में उनका उन शास्त्रों के विरुद्ध मत प्रसिद्ध करना और उसे उन शास्त्रों के प्रमाण देकर सिद्ध करने का प्रयास करना बहुत बड़ा प्रताररण एवं आगम विरुद्ध विपरीत मार्ग का ( मिथ्या मार्ग का) प्रचार करना है । ऐसे प्रचार से अनेक भोले भाइयों का कल्याण हो सकता है } यहां पर हम यह प्रगट कर देना परमावश्यक समझते हैं कि स्त्री-मुक्ति, सब-मुक्ति और केवली कवलाहार इन मन्तव्यों का किन्हीं दि० जैन शास्त्रों में विधान हो और किन्हीं में निषेध हो जैसा कि उपर्युक्त शास्त्रों के प्रमाण देकर प्रो० मा० बताते हैं सो भी नहीं है, दिगम्बर शास्त्रों में चाहे वे प्राचीन हों चाहे अर्वाचीन हों कहीं भी स्त्री-मुक्ति आदि का विधान नहीं मिलेगा | जितने भी दिगम्बर धर्म में आर्ष शास्त्र हैं उन सबों में स्त्री मुक्ति आदि का पूर्ण निषेध है। इसी प्रकार भगवान कुन्दकुन्द स्वामी और आचार्य उमास्वामी इन दोनों आचार्यों में भी स्त्री-मुक्ति, सवस्त्र- मुक्ति, केवली कवलाहार इन बातों में कोई मतभेद नहीं है । इन दोनों में ही क्यों ? जितने भी आज तक दिगम्बर जैनाचार्य हुये हैं उन प्राचीन और अर्वाचीन (नवीन) सभी आचार्यों में इन मन्तव्योंके विषय में कोई मतभेद नहीं है, इन मन्तव्योंकी सिद्धि
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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