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________________ [४] कोई भी नवीन स्कीम रची जानी चाहिये, कोई भी नई बार प्रकट करनी चाहिये, जिससे समाज में उत्तेजना पैदा हो, सामयिक प्रगति की ओर झुकाव हो। चाहे इस प्रकार की उत्तेजना पूर्ण कार्य-प्रणाली से आगम की मर्यादा नष्ट होती हो, चाहे सच्चे हित से समाज दूर होती हो; इसकी उन्हें चिन्ता नहीं है। ऐसे लोगों का ध्येय और कार्य-क्षेत्र पुरातन प्राचार्यों के मार्ग का अनुसरण करे, यह तो लम्बी बात है, किन्तु उनके प्रतिपादित मार्ग से सर्वथा विपरीत मार्ग का प्रदर्शक बनता है। इसका कारण विचार-स्वातन्त्र्य एवं श्राद्धिक भावों की कमी है। इन सब बातों से कोई भी विचार-शील विवान् यह परिणाम सहज निकाल सकता है कि पहले शिक्षाकी कमी रहने पर भी समाज का सच्चा हित था। वर्तमान में शिक्षा के आधिक्य में भी समाज का उतना हित नहीं है, प्रत्युत हानि है। इसी प्रकार वर्तमान का तत्वज्ञान-प्रसार अथवा साहित्य-प्रसार पुरातन महर्षियों के तत्वज्ञान एवं साहित्यप्रसारसे सर्वथा जुदा है। उस समयका साहित्य जनताको हितकामना से रचा जाता था, उसे यथार्थ तत्व-बोध हो और वह सन्मार्ग पर आरूढ़ होकर अपने हित-साधन में लग जाय, इसी पवित्र उद्देश्य एवं सद्भावना से महर्षियों ने शास्त्र-रचना की थी, आज वे ही शास्त्र लोक का कल्याण कर रहे हैं।
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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