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________________ [१४३ ] हुए प्रमाण से ही वीतराग अहंत भगवान के सुख दुख का अभाव सिद्ध होता है। पुराण शास्त्रोंमें भी प्रो. सा. के मन्तव्योंका खण्डन ही पाया जाता है। स्त्रीमुक्ति, सवस्खमुक्ति और केवली कवलाहार, इन तीनों बातों का खण्डन कर्मसिद्धांत एवं गुणस्थान चर्चा के आधार पर तो हम बहुत विस्तार के साथ कर चुके हैं। इसके सिवा प्रथमानुयोग शास्त्रों में मोक्ष जाने वाले केवलियों का सर्वत्र वर्णन किया गया है। पाण्डवों को तातेर भूषण पहना कर उपसर्ग किया गया, देशभूषण कुलभूषण को व्यंतरों ने उपसर्ग किया, गजकमार मुनि के सिर पर जलती हुई सिगड़ी रक्खी गई, सुकौशल .को सिंहनी ने भक्षण किया उन उपसर्गों को जीत कर उन्हें केवलज्ञान हुआ। इसके सिवा कोई अमुकस्थानमें पटके गये। संजयत मुनि को नदी में पटका गया और उसी समय उन्हें केवलज्ञान हुआ। कोई खड़गासन से मोक्ष गये। कोई एक वर्ष तक घोर तपश्चरण करते रहे। आदिनाथ भगवान ने छहमास आहार का त्यागकर दिया पुनः छहमास अंतराय रहा बाहुबलि एक वर्ष तक ध्यान में लीन रहे। भरत भगवान को कपड़े उतारते २ केवलज्ञान अन्तर्मुहूर्त में होगया। अमुक केवली भगवान ने अमुक २ स्थानों पर विहार किया। अमुक अमुक ने गिरनारि, चम्पापुर, पावापुर कैलास आदि से मोक्ष
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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