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________________ [१३७ ] __ संक्षेप में थोड़ा सा दिग्दर्शन हेतुवाद का भी कर देना ठीक होगा, देखिये वेदनीय का उदय मोहनीय के अभाव के पीछे भी क्यों माना गया है इसका उत्तर कार्यकारण भाव से समझ लेना चाहिये। क्षपक श्रेणी चढ़ने वाले जीव के मोहनीय कर्म की स्थिति कितनी पड़ती है और वेदनीय की कितनी पड़ती है, जहां दशवें गुणस्थान में सूक्ष्म लोभ का उदय रहता है, वहां उसकी सत्ता कितने समय की रह जाती है-केवल अन्तमुंहूर्तमात्र की, वह भी उसी दश के अन्त में नष्ट हो जाती है, फिर मोहनीय कर्म प्रात्मा में लेशमात्र भी नहीं रहता है। परन्तु वेदनीय कर्म तो सत्ता में बैठा हुआ है और उदय में भी आता रहता है। इस लिये वह स्थिति और सत्ता रूप कारण के सद्भाव से मोहनीय कर्म के अभाव होने पर भी बना रहता है। दूसरी बात यह भी समझ लेना चाहिये कि अघातिया कर्म सभी ऐसे हैं जो घातिया कर्मा के सदैव सहयोगी होकर कार्यकारी रहे हैं और जहां तक घातिया कर्मों का सहयोग बना हुआ रहता है, वहां तक उनका कार्य भी उदयानुसार होता रहता है, घातियों के प्रभाव से अघातिया कर्म उदय में ही रहते हैं, वहां उनका मुख्य कार्य नहीं रहता है। कदाचित् आयुकर्म के विषय में शंका उठाई जा सकती है, सो भी सूक्ष्म विचार करने पर दूर हो जाती है, कारण आयुकर्म की स्थिति
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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