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________________ [ ११६ ] जानकार नहीं होंगे । समस्त घातिया कर्मों को नष्ट कर अनन्त सुख का अनुभव करने वाले, परम विशद्ध, इन्द्र, चक्रवर्ती, एवं गणधरा दि महर्षियों द्वारा परमवन्दनीय परमात्माके क्षुधा प्यास की वेदना बताने का साहस करना और प्रकारान्तर से दिगम्बराचायों को कर्मसिद्धांत के जानकार बताना यह श्रागम विरुद्ध एवं श्रसह्य दात है ? जहां भूख प्यासकी वेदना है। वहां क्या देवपना रह सकता है ? इस बात को तो हम आगे, अच्छी तरह सिद्ध करेंगे। परन्तु प्रो० सा० से यह पूछना चाहते हैं कि सर्वार्थ सिद्धि राजवार्तिक और श्लोकवार्तिककार ने जो तत्वार्थ सूत्र का अर्थ किया है, वह तो ठीक नहीं। क्योंकि उन्होंने तो केवली के क्षुधादि बाधाओं का सर्वथा अभाव बताया है । वे सब तो प्रो० सा० की खयाल से कर्म सिद्धान्त के वेत्ता नहीं थे परन्तु तत्वार्थ सूत्र से केवली भगवान के क्षुधा प्यास की बाधा सिद्ध करने वाले प्रो० सा० ने उस तत्त्रार्थसूत्र का वही अर्थ है जो वे कहते हैं यह बात किस दिव्यज्ञान से जानली ? या और कौन सी गुप्तटीका उन्हें मिली है जिसमें उनकी समझ के अनुकूल अर्थ मिल गया है। यदि हो तो वे प्रगट करें, यदि सी टीका कोई नहीं है तो तत्वार्थसूत्र की टीका करने वाले और उसी सिद्धान्तका प्रतिपादन करने वाले आचार्य पूज्यपाद, आचार्य विद्यानन्द आचार्य अकलंकदेव इत्यादि सभी श्राचार्यों को तो कर्मसिद्धान्त का रहस्य तथा तत्वार्थ सूत्र का ठीक २ अर्थ 1 "
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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