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________________ [ १०८ ] इन पंक्तियों का अर्थ भी जो उसी धवला में हुश्रा है वह ही अर्थ यहां रख देते हैं "यहां पर द्रव्य संयम का ग्रहण नहीं किया गया है। यह कैसे जाना जाय ? समाधान-क्योकि भले प्रकार जानकर और श्रद्धानकर जो यम सहित है उसे संयत कहते हैं, संयत शब्द की इस प्रार व्युत्पत्ति करने से यह जाना जाता है कि यहां पर द्रव्य संयम का ग्रहण नहीं किया गया है।" ___ इन पंक्तियों से जो कि धवला में ही छपी हुई हैं स्पष्ट सिद्ध है कि जो पांचों पापों का त्याग रूप संयम है, वह भावहै, द्रव्यमयम दूसरा ही है। प्रो० सा० को इस कथन से वह समझ लेना चाहिये कि मुनि का व-त्याग, नग्न रहना, पिच्छिका रखनी; कमण्डलु रखना यह सब द्रव्यसंयम का स्वरूप है। भावसंयम का उल्लेख करके यह कहना कि इसमें वस्त्र-त्याग कहां है एक अद्भुत बात है। इसके सिवा जो भावसंयम धवलसिद्धान्त से प्रो० सा० पांच पापों का छोड़ना मात्र बताते हैं सो भी नहीं है । देखिये "अथवा व्रतसमितिकषायदण्डेद्रियाणां धारणानुपालननिग्रहत्यागजयाः संयमः।" (धवलसिद्धांत पृष्ठ १४४) अथवा व्रतों का धारण करना, समितियों का पालन
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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