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________________ [ १०६] उनका यह कहना और समझना सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक आदि सभी ग्रन्थों के सर्वथा विपरीन है। आगे प्रो० सा० ने सवत्र मोक्ष-सिद्धि के लिये धवल सिद्धान्त ग्रन्थ का प्रमाण दिया है। वे लिखते हैं "धवलाकार ने प्रमत्त संयतों का स्वरूप बतलाते हुए जो संयम की परिभाषा दी है उसमें केवल पांच ब्रतों के पालन का ही उल्लेख है-"संयमो नाम हिस्सऽनृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिः।" ___ पाठकगण ऊपर की पंक्तियों को पढ़ लेवें, प्रो० सा० ने धवल सिद्वान्त ग्रन्थ का कितना जबर्दस्त प्रमाण सवस मोक्ष प्राप्ति के लिये दिया है ? साधारण जनता तो समझेगी कि धवल सिद्धांतकार भी समस्त्र मोक्ष बताते होंगे परन्तु वास्तव में बात इसके सर्वथा विपरीत है। ऊपर जो धवल की पंक्ति है उससे इतना ही सिद्ध होता है कि हिंसादि पांच पापों का त्याग करना संयम कहलाता है। इससे वस्त्र सहित भी मोक्ष होती है यह बात उन्होने कौन से पद या बीजाक्षर से जान ली ? यदि वे यह समझते हों कि पांचों पापों का त्याग करने से ही मुनि के संयम हो जाता है, उसमें वस्त्र-त्याग का अथवा नग्न रहने का कोई विधान नहीं है तो इस प्रकार की समझ के उत्तर में हम यह पूछते हैं कि जब पांच पापों को छोड़ना मात्र ही संयम है तब वह संयम मुनि का होग या गृहस्थ का। क्योंकि पांच पापों का त्याग एक देश गृहस्थ भी
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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