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________________ [च] इस प्रकार दिगम्बर शास्त्रानुसार भी मुनि के लिये एकान्ततः वस्त्र-त्याग का विधान नहीं पाया जाता। हां कुन्दकुन्दाचार्य ने ऐसा विधान किया है, पर उसका उक्त प्रमाणप्रन्थों से मेल नहीं बैठता है। ३-केवली के भूख--प्यामादि की वेदना कुन्दकुन्दाचार्य ने केवली के भूख प्यासादि की वेदनाका निषेध किया है । पर तत्वार्थसूत्रकारने सबलना से कर्मसिद्धांत अनुसार यह सिद्ध किया है कि वेदनीयोदय-जाय क्षुधापिपासादि ग्यारह परीपह केवली के भी होते हैं (देखो अध्याय ६ सूत्र ८-१७)। सर्वार्थसिद्धिकार एवं राजवातिककार ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि मोहनीय कर्मादयक अभाव में वेदनीयका प्रभाव जजरित हो जाता है इससे वेदना केवली के नहीं होती। पर कमसिद्धान्त सं यह बात सिद्ध नहीं होती। मोहनीय के अभाव में गगढप परिणतिका अभाव अवश्य होगा पर वेदनीय-जन्य वेदना का अभाव नहीं हो सकेगा । यदि वैसा होता तो फिर मोहनीयकर्म के अभाव के पश्चात वेदनीयका उदय माना ही क्यों जाता ? वेदनीय का उदय सयोगी और अयोगी गुणस्थानमें भी आयुके अन्तिम समय तक बराबर बना रहता है। इसके मानते हुए तत्संबंधी . वेदनाओं का अभाव मानना शास्त्र सम्मत नहीं ठहरता। दूसरे, समन्तभद्र स्वामीने आतमीमांसामं वीतरागके भी सुख और दुःखका सदभाव स्वीकार किया है यथा-- पुण्यं ध्रुवं स्वतो दुःखात्पापं च सुखतो यदि । वीतरागो मुनिर्विवांस्ताभ्यां युज्यानिमित्ततः ।६३।
SR No.010088
Book TitleDigambar Jain Siddhant Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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