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________________ यहाँ उपर्युक्त दो पाकों के लिए जो शब्द शास्त्रकार ने लिखे हैं उनके बारे में किसी को भी आपत्ति नहीं है, वे तो सबको मान्य हैं। परन्तु उन शब्दों के अर्थ में आपत्ति है। वे शब्द विवादग्रस्त है, स लिए इसकी चर्चा करके इसका निर्णय करने की आवश्यकता है। विवादास्पद सूत्रपाठ और उसके अर्थ के लिये जैन विद्वानों के मत सूत्र में वर्णित मल पाठ :-- "तं गच्छह गं तुमं सोहा ! मेंढियगामं नगरं रेवतीए गाहाव तिणीए गिहे, तत्थ णं रेवतीए गाहाबइणीए ममं अट्ठाए दुवे कबोयसरोरा उवक्खडिया, तेहिं नो अट्ठो, अस्थि से अन्ने पारियासिए मज्जारकहए कुक्कुडमंसए तमाहराहि, एएणं अट्ठो। (भगवती सूत्र शतक १५) जैन शास्त्रो में से नवाँगों (नौ आगमों) के टीकाकार महान् समर्थ विद्वान आचार्य अभयदेवसूरि ने क्रमशः अग सूत्रों पर टीका रची है। तृतीयांग-ठाणांग जी सूत्र की टीका करते हुए उसके नवमे ठाणे में प्रभु महावीर के समय मे नव (९) जनों ने तीर्थकर नामकर्म बांधा इसका वर्णन आया है। उन नौ जनों ने किस-किस कारण से तथा क्या करने से तीर्थकर नामकर्म उपार्जन किया ऐसा पाठ है। उनमें से महपति की भार्या रेवती भी एक है। उपर्युक्त विवाद वाला आहार प्रभु को देने के कारण रेवती ने तीर्थकर नामकर्म का बन्ध किया था ऐसा पाठ है। उस प्रसंग का उल्लेख करते हुए नवांगीटीकाकार अभयदेवसरि ने इस विवाद वाले सूत्रपाठ का इस प्रकार अर्थ किया है : ततो गच्छ त्वं नगरमध्ये तत्र रेवत्यभिषानया गृहपतिपत्न्या मवर्ष - १-इस पाठ का उल्लेख हम आगे करेगे।
SR No.010084
Book TitleBhagwan Mahavir tatha Mansahar Parihar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1964
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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